दया की भावना

दया की भावना


- दया भाव 

-अपना हृदय कठोर कर लेना’ और दूसरों की ज़रूरतों को अनदेखा करना बहुत आसान है। 

-एक-दूसरे से प्यार करने की गहरी इच्छा होने के बावजूद, हम अकसर दूसरों का दर्द मिटाने के मौकों को हाथ से जाने देते हैं। 

-अपने अंदर हमदर्दी का गुण पैदा करने से, भलाई करने और दया दिखाने में हमें मदद मिलती  है।

- हमदर्दी का मतलब है, दूसरों के हालात, उनकी भावनाओं को  समझना और उन पर तरस खाना।

-कृपामय और भाईचारे की प्रीति रखनेवाले ही  करुणामय  बनेगे । 

 -दया का  शाब्दिक मतलब है, दूसरे के साथ दुःख  में मदद करना । 

-जो आनन्द में हैं उनके साथ आनन्द मनाओ और जो शोक में है उनके साथ शोक।

- सभी लोगों में कुछ हद तक हमदर्दी की भावना पैदाइशी होती है। 

-भूख से तड़पते बच्चों या मायूसी में डूबे शरणार्थियों को देखकर किसका दिल नहीं पसीजता ।

-अपने बच्चे को सिसकियाँ भरता देख कौन-सी माँ उसे अनदेखा कर सकती है? 

-जब भी  कोई व्यक्ति मुसीबत में दिखे तुरंत भगवान  की गहरी याद में चले  जाओ और सिमरण करें भगवान आप दया के सागर है तो आप से दया की  ऐसी शक्तिशाली तरंगे निकलेगी जो मुसीबत में फंसे व्यक्ति को राहत महसूस होगी और वह उस दुख से बाहर आ जायेगा ।

- जिन लोगों के हालात से हम कभी नहीं गुज़रे हैं, उनके लिए भी हम हमदर्दी पैदा कर सकते हैं और   ऐसा  करना ज़रूरी भी है ।

-हम जितनी अच्छी तरह उन्हे  सुनेंगे, उतना ज़्यादा वे खुलकर, हमें अपने दिल की बात बताएँगे। 

- हर कोई हमें खुलकर नहीं बताएगा कि वह कैसी भावनाओं या कैसे हालात से गुज़र रहा है।

-अगर कोई हताश लगता है, कोई जवान दूसरों से कटा-कटा रहता है या कोई जोशीला प्रचारक ठंडा पड़ गया है तो  समझ लेना चाहिए कि  उसे कोई समस्या है । 

-किसी समस्या को शुरू में ही ताड़ लेने की यह काबलियत, माता-पिता  और मुखिया के लिए बेहद ज़रूरी है। 

-जो भी जिज्ञासु या परिवार का सदस्य समस्या में है उसके प्रति दयालु बनो । 

- आप मां बाप या बड़े होने का दम भरते है तो उनकी समस्या हल करो  उन्हे सुनो सहयोग दो । प्यार दो ।  अपने पास बिठाओ । जो आपस में रूठे है उनका समझौता कराओ । उन्होने कोई गलती की  है तॊ  माफ कर दो ।  तभी 
आप दयावान कहलाएंगे अन्यथा नहीं  । 

-अगर आप दूसरों को  लिखित में माफी मांगने के लिये मजबूर करते है तो आप नाम के योगी है  आप में दया भाव नहीं है  । अभी तक तानाशाह  वृति  बदली नहीं है ।  

-अगर किसी  को सजा देनी ही है तो  उसे  एकांत में साकारात्मक सोच की बुक्स या  अव्यक्त मुरली की बुक्स पढ़ने की सजा दो ।  उसे अधिक  से अधिक कोर्स करवाने की सजा दो ।   उसे काम या सेवा से वंचित नहीं करो  ।  उसे बदनाम नहीं करो । उसे त्यागपत्र देने के लिये मजबूर नहीं करो ।  उसे ताने नहीं मारो ।  यह गुण सिद्व करते है कि  आप दूसरों के   प्रति दयालु है । 

-मै दयावान हूं इस शब्द को मन में हर समय रिपीट करते  रहो  धीरे धीरे आप दयालु बन जायेगे ।

-जितना  हम अपने बच्चों और अधीनस्थ कर्मचारियो और जिज्ञासुओं  से ज़्यादा प्यार करेंगे, उनका भला करेंगे और उन पर दया दिखाएँगे !  आप को  अतिइन्द्रिय सुख की अनुभूति होगी । 

- अपने अंदर दया का  गुण बढ़ाना हमारा फर्ज़ बनता है। 

-दया  का भाव रखने से हमारे मन से ऐसी तरंगे निकलने लगती है जो लेजर तरंगो की तरह  शक्तिशाली होती है और प्रत्येक समस्या का  हल करती है । 

-दयालु व्यक्ति की सोच बदल जाती है । 

- दया का गुण चऱित्र बदल देता है  ।

-अगर आप स्थायी सफलता चाहते है तॊ आप को दयालुता का गुण अपनाना ही होगा । 

-दयालुता की भावना आप को महान  बनाएगी  और किसी भी समस्या  से  घिरे होने पर आप  उसका हल निकाल लेंगे । 

-मन में उठ रही  हिंसा,  द्वेष,  बैर,  विरोध की भीषण  लपटे दया का स्पर्श पाते ही शांत हो जाएगी । 

-भगवान आप दया के सागर है  यह सिमरण करते रहने से आप  दया के  गुण से भरपूर हो जाएगें !

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