दिव्य बल -अहसास को बदल दो

दिव्य बल 

दिव्य बल

-अहसास को बदल दो

-इस  संसार मेँ जो कुछ  भी हो रहा है,  उसके पीछे कोई ना कोई बल है ।

-शरीरिक बल,  भौतिक बल,  यांत्रिक बल,  बाहु  बल,  धन बल आदि आदि ।

-ये बल यथा शक्ति है ।

-एक सूक्ष्म बल जो दिखाई नही देता परन्तु सब भौतिक हल चल के पीछे कार्य कर रहा है ।

-वह है चुम्बकीय बल जिसे आकर्षण का बल भी कहते है ।

-एक है आत्मिक बल ।  यह भी सूक्ष्म बल है ।
 
-तीसरा बल है परमात्मा का बल जिसे अदृश्य बल,  दिव्य बल या  कुदरती बल आदि आदि के नाम से जाना  जाता है  ये बल भी सूक्ष्म है ।  इसे स्थूल आंखो से नही देखा  जा सकता ।

-असल मे तीन ही बल है जो अदृश्य है परन्तु असीमित है ।

-चुम्बकीय बल,  आत्मिक बल और परमात्म  बल ।

-चुम्बकीय बल और आत्म  बल पर  बहुत खोज हो चुकी है ।

-परमात्म  बल के बारे  सारा  संसार जानता  है परन्तु इसके बारे सभी के अनुभव अलग अलग है ।

-भौतिक और अभौतिक सुख भोगने वाली  आत्मा ही है ।

-अगर आत्मा ईश्वरीय बल जिसे दिव्य बल या प्यार का बल  कहते है उसके बारे जान जाए तो महान क्रांति हो सकती है

-चुम्बकीय बल के नियम अटल है ।
   
-ऐसे ही दिव्य बल/ प्यार के बल के नियम भी अटल होते है ।

-दिव्य बल प्रत्येक व्यक्ति और प्राणी  पर कार्य करता है । इसी बल के कारण मृत्यु अवश्य होती है चाहे वह कोई भी हो । 

-हमे हर रोज इस दिव्य बल के बारे कुछ ना कुछ नया सीखना  चाहिए और उस का लाभ उठाना  चाहिए ।

-दिव्य बल अर्थात आप के अंदर जो भावनाए होती है वही आप के आने वाले  कल को आकर्षित करती है ।

-चिंता  अधिक चिंता को  खींचती  है ।  तनाव अधिक तनाव को खींचता है । दुख अधिक दुख को खींचता है । असंतोष अधिक असंतोष को खींचता  है ।

-प्रसन्नता अधिक प्रसन्नता को खींचती है ।  आंनद  अधिक आनंद को खींचता है । शांति   अधिक शांति को खींचती है ।  दयालुता  अधिक  दयालुता को खींचती है ।   प्रेम अधिक प्रेम को खींचता है ।

-आप का काम अंदरूनी है  अपने संसार को बदलने के लिए सिर्फ अपने अंदर के अहसास को बदल दो ।
ओम शान्ति..

-प्रत्येक मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ न  कुछ सोचता रहता हैं ।  किसी ना किसी भावना से
प्रभावित  होता रहता  है । 

-न्यूली बोर्न बेबी की एक ही भावना रहती है कि  उसकी माता  उसे समय पर  दूध पानी देती रहे और दूसरी सुविधाओ का ध्यान रखे ।

-अगर आप भावना रखते हैं अपने बॉस को,  निमित टीचर को नहीं झेल सकता तो यह आप नकारात्मक भावना व्यक्त कर रहे हैं ।

-आप के संबंध बॉस के साथ कभी अच्छे नहीं बनेगे  और ऐसे सभी लोगो के साथ नहीं बनेगे जिनके बारे आप ऐसा सोच रहे  है ।

-यदि आप सोचते हैं मेरे घर के लोग,  समूह के लोग',  आफिस के लोग बहुत अच्छे हैं  तो आप सकारात्मक
भावना भेज रहे हैं ।   इसका परिणाम यह होगा कि  आप जहां जाओगे आप को सभी प्यार करेगे ।

-जितनी अच्छी भावना होगी उतना ही प्रेम करेगे । जितना खुश होंगे उतना ही प्रेम करेगे । बदले मेंं आप को उतना ही प्रेम मिलेगा ।

-आप जब भी निराश होते हैं तो यह बुरी भावना है ।  इस का परिणाम आप को उदासी मिलेगी ।

-जितना जितना  अच्छा महसूस करेगे आप के जीवन मेंं अच्छा घटित होगा  ।

-जितना खुश रहेगे, सुखी रहेंगे,  रोमांचित  रहेगे,  उत्साही रहेगे, ये सब  अच्छी भावनाए हैं ।  इनका परिणाम आप का जीवन बहुत श्रेष्ट बनेगा ।

-अगर आप चिढ़ते हैं तो यह नकारात्मक  भावना हैं ।

-आप को चिढ़ाने  वाली परिस्थितयां  मिलेगी ।  आप को मच्छर काटेगा,  कुते भौंकेगे,  बच्चे शोर करेगे ।  लोग बिना मतलब हॉर्न बजाएंगे जिस से आप को चिढ़ होगी ।

-अगर आप उदास हैं तो ऐसी ही परिस्थियाँ  मिलेगी ।

-अगर आप खुश हैं तो खुशी कि परिस्थितिया मिलेगी ।

- सभी व्यक्ति ज्यादातर  नकारात्मक विचारो मेंं रहते हैं इस लिए उन्हे सारा दिन नकारात्मकता मिलती हैं ।  यही
कारण  हैं कि  सभी व्यक्ति तनाव मेंं रहते हैं ।

-कोई भी अच्छा काम करना चाहते हैं या कोई पुस्तक लिखना  चाहते हैं तो पहले मन मेंं खुशी लाओ  ।  इसका आसान तरीका हैं ।

-कितना भी कोई विरोधी सामने बैठा हो आप अपना मन स्नेही व्यक्ति मेंं लगाओ ।  मन मेंं  भगवान को देखो ।  अपने इष्ट को देखो ।  कोई बगीचा देखो ।  कोई अच्छी घटना मेंं मन को लगाए रखो  ।

-दिव्य बल का नियम कहता है कि बीमारी से  लड़ कर उस से मुक्ति नही पा सकते ।

-अगर आप बीमारी से लड़ने के बारे मेँ निर्णय लेते है  तो आप  अपना ध्यान बीमारी से लड़ने,  यानी  बीमारी पर केंद्रित कर   लेते है और हम  बीमारी को आकर्षित करते है ।

-आप ने जिन डॉक्टरो को चुना है उन्हे अपना काम करने दे  और अपना दिमाग केवल स्वस्थ्य पर केंद्रित रखे ।

-तंदरुस्ती के विचार  सोचे ।   तंदरुस्ती के  शब्द बोले ।  स्वस्थ व्यकितत्व की    कल्पना करनी चाहिए ।
ओम शान्ति..

-प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे जीवन मेंं सफलता मिले ।  मनचाहे लक्ष्य प्राप्त  हो  । बच्चे सफल कैसे हो ।  पति श्रेष्ट कैसे बने ।  रोग कैसे ठीक हो ।  योग मेंं सिद्वि  कैसे प्राप्त करे ।  लोगो से स्नेह कैसे हो ।  लड़ाई झगड़े कैसे खत्म हो ।  काम  धंधे मेंं बढ़ोतरी कैसे हो । आपसी क्लेश कैसे खत्म हो ।  प्राय  प्रत्येक व्यक्ति यही प्रशन  करता है ।

-कोई भी काम करते है,  करना चाहते हैं,  चाहे वह भोजन बनाना  हो,  सकूल जाना हो,  काम पर जाना हो, ज्ञान  सुनना सुनाना  हो, पहले अपने विचार,  अपनी मनो भावना  को चेक करो ।

-अपने विचारो को प्यार  मेंं बदलो ।

-उन सभी चीजो,  सभी आदतों,  सभी कार्यो,  सभी व्यक्तियों,  सभी साधनों  के बारे सोचे,  जिसे आप प्यार करते हैं  या करते थे ।

-सब से उतम यह हैं कि भगवान के बिंदु रूप या इष्ट  को देखते हुए भगवान के गुण सिमरन करो आप प्यार के सागर  है,,  प्यार के सागर हैं ।

-अगर मन मेंं प्यार की  लहर नहीं उठ रही है  तो कोई प्यारा सा गीत या भजन आदि सुनो और सुनते रहो और भगवान को याद करते रहो ।  आप कोई काम भी कर सकते है परन्तु मधुर संगीत सुनते हुए करें ।

-अगर आप ऐसा नहीं करना चाहते । तब  एक एक कर के घर,  बाग-बगीचे ,  मित्र,  फूल,  मौसम,  रंग,  स्थितिया,  घटनाए सप्ताह,  महीने,  वर्ष मेंं जुड़ी हुई मनचाही प्रिय घटनाए,  प्रिय चीजे,  प्रिय व्यक्ति/व्यक्तियों को याद करो  और बीच मेंं भगवान को याद करते रहो,  देखते रहो ।

-हो सके तो वह चीजे,  व्यक्ति या और कुछ जो आप को बहुत प्रिय हैं,  उनकी लिस्ट बना लो ।

-अच्छी भावनाओ  और अच्छे  विचारो को बढ़ाने  का यह  सहज तरीका हैं ।  इसे आप कहीं भी,  कभी भी कर सकते हैं ।

-आप स्वास्थ्य,  धन,  संबंध,    नौकरी और संबंधो के बारे जो महसूस करते हैं,  आप के जीवन मेंं वही घट रहा है   तथा आगे बढ़ कर मिलने  वाला  हैं ।

-इस समय जब आप यह लेख पढ़  रहे हैं चैक करो मै क्या सोच रहा  हू । अगर नकारात्मक सोच रहे हैं  तो  इस का विपरीत अच्छा क्या हैं सिर्फ वह सोचो ।  यह संशय न  आने दो कि  पता नहों,   होगा कि नहीं ।  आप को सिर्फ अच्छा अच्छा सोचना हैं ।  जो चाहते हैं वह सोचना हैं ।  जो इस समय विपरीत घट रहा हैं उस पर नहीं  सोचना ।

-आप अपने स्वास्थ्य के बारे नौकरी के बारे,  परिवार के बारे  या अन्य  महत्वपूर्ण विषयो के बारे क्या सोच रहे हैं ।

-इस सोच पर ध्यान रखना हैं ।

-सिर्फ और सिर्फ अपनी मनोदशा,  अपनी मनोस्थिति पर ध्यान रखना हैं ।

-आप की  भावना और आप के आस पास के संसार का आपस मेंं  अटूट संबंध हैं ।

-परमात्मा का दिव्य बल अपनी तरफ से कुछ नहीं करता ।

-यह तो आप की भावनाओ पर प्रतिक्रिया करता हैं ।

-एक का लाख गुना अच्छा फल देता हैं ।

-एक का लाख गुना बुरा फल भी देता हैं ।

-हमारा प्रत्येक संकल्पा हमें  बताता  है कि  यह ठीक है या गलत है ।

-सोचते ही अगर बुरा बुरा महसूस होता है तो यह परमात्मा अपने दिव्य बल से इशारा  देता है कि  यह ठीक नहीं,  इसे मत करो इसका फल बुरा होगा ।

-इसलिए हमारे जीवन मेंं जो विपरीत हो रहा है,  उसे अच्छे विचारो मेंं बदलो ।
ओम शान्ति..


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