विशुद्ध चक्र
विशुद्ध उर्जा चक्र
-इस उर्जा चक्र को, कंठ चक्र भी कहते हैं ।
-विशुद्ध चक्र गले के मूल मे ,कंठ वाली जगह पर स्थित है ।
-मेरुदंड की सीमा , इस चक्र से समाप्त हो जाती है ।
-यह परम शक्तिशाली योग चक्र, अनंत शक्तियों से परिपूर्ण है ।
-यह उर्जा चक्र, आकाश तत्व से जुड़ा हुआ है ।
-ये चक्र थायराइड ग्रंथि के द्वारा, हारमोन पैदा करता है ।
-थायराइड ग्रंथि का, दांतो के विकास ,और मानसिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान है ।
-यह ग्रंथि शरीर में आक्सीजन का संतुलन बनाये रखती है, तथा कार्बनडायअकसाइड के निकालने का मार्ग प्रशस्त करती है ।
-शरीर का वजन बढ़ना, सूजन आ जाना, शिथिलता, हृदय का तेजी से धड़कना, तथा त्वचा में रूखापन ,आदि आने लगता है, जिस का कारण यह है ,कि थायराइड ग्रंथी का संतुलन बिगडा हुआ है ।
-इस चक्र पर नीले रंग का प्रकाश टिमटिमाता रहता है ।
-यह चक्र सीधे अवचेतन मन को प्रभावित करता है ।
-यह चक्र मस्तिष्क के साइलेंट क्षेत्र को जागृत करता है ।
-यहां 16 नाड़ीया मिलती है, जिनसे प्रकाश निकलता रहता है ,जो कि एक कमल के फूल की तरह दिखता है। ।
-इस चक्र पर ध्यान लगाने से, वाक सिद्वि मिल जाती है । व्यक्ति की जुबान में मिठास आ जाती है । उसके द्वारा दिये गये वरदान ,और श्राप दोनो ही सच साबित होते हैं !
-जब व्यक्ति ध्यान के मार्ग पर आगे बढ़ता है ,तो सब से पहले यही सिद्वि मिलती है । उसकी आवाज़ में मिठास आ जाता है । उसकी आवाज़ में सम्मोहन आ जाता है । जो भी उसे सुनता है ,वह उस के साथ जुड़ता चला जाता है । हजारो और लाखो में शिष्य बन जाते है ।
-प्रायः सभी योगी इस पहली सिद्वि में रह जाते है । उनके शिष्यों की संख्या बढ़ जाती है । योगी उन की देख रेख वा पालन पोषण में लगे रहते है, और भगवान से दूर हो जाते हैं । वह वाह वाह में मारे जाते हैं ।
वह आज्ञानी पुरुषों की तरह स्थूल प्रचार, प्रसार और धन दौलत कमाने ,और सुख सुविधायें भोगने में लगे रहते हैं । शिष्यों के मोह में फस जाते हैं। सिर्फ अष्ट रत्न लेवेल की आत्मा ही, इसे पार कर पाती है ।
- यह चक्र हमारे कंठ में है ।
-साधारण भाषा में ,यह चक्र हमारे उन सब नाडियो को कंट्रोल करता है ,जिस के द्वारा हम बोलते, है बातचीत करते है ।
-अतः हमें जानना होगा ,क़ि हमारी आवाज़ कैसे निकलती है । हम कैसे बोलते है ।
-मनुष्य जीवन का आधार हमारे संकल्प है । संकल्प और कुछ नहीं सिर्फ विद्युत है।
- संकल्प हमारे मन में उठते है । अच्छे बुरे जो भी है, वह हमारे मन में उठते है ।
-आँखे हमारे मन की डायरेक्ट कर्म इन्द्रिय है । जो भी विचार हम मन में करते है, वह उसी समय आँखो में तैरने लगते है । इन संकल्पों से आँखो में कम्पन होने लगता है ।
-आँखो के कम्पन से हमारे मुख की मांसपेशियों में कम्पन होने लगता है । यह कम्पन मुख के अन्दर ,वा बाहर की मांसपेशीयो में होता है ।
-मुख के अन्दर जो मांसपेशीया है, उन का सम्बन्ध सांस नली से है ,जहां से सांस आता, और जाता है । यह स्थान गले में कंठ के पास है, जहां से सांस नली फेफड़ों को जा रही है । यह बहुत सूक्ष्म तंतु है । संकल्पों से उन तंतुओ में कम्पन होने लगता है । वह कम्पन जो सांस ले रहें है, उस हवा में होने लगता है ।
-सांस नली के अन्दर, कंठ के पास जहां संकल्प हवा में कम्पन कर रहें है, उन तंतुओ का सम्बन्ध मनुष्य के होंठो से है, तालू से है, हमारी जीभ से है । हमारे कंठ में जो कम्पन हो रहा है, वह हमारे होठों, तालू वा जीभ में कम्पन करती है, जिस से होंठ वा जीभ, और तालू आपस में टकराने लगते है, जिन से आवाज़ उत्पन होने लगती है, और वैसे शब्द बोलने लगते है, जैसे हम सोच रहे होते है ।
-हमारे कंठ में जहां सांस की हवा में कम्पन हो रहा है, वहां पर 16 सूक्ष्म नाड़ीया मिलती है, जो शरीर के अलग अलग भागो, हाथो से , पैरो से, कानो से, त्वचा से तथा दूसरे अंगो से जुड़ी हुई है । यही से संदेश शरीर के अलग अलग भागों को जाता है , और हम उसी अनुसार शरीर से कार्य करने लगते है । जैसे हम सोचते है, सब्जी लानी है, तो हमारी टांगे चलने लगती है । हम सोचते है, कपड़े धोने है ,तो हाथ चलने लगते है । हम सोचते है नींद करनी है, तो हम लेट जाते है ।
- ऐसे ही हमें शरीर के अलग अलग भागों से, जो संदेश व प्रतिक्रियाएँ मिलती है, वह इसी रास्ते से वापिस मन तक पहुंचती हैं ।
-विशुद्ध चक्र या कंठ चक्र, आकाश तत्व का प्रतीक है । आकाश में जो कुछ घट रहा है, यह चक्र उस से प्रभावित होता रहता है ।
-आकाश एक तत्व है । यह बहुत सूक्ष्म है । यह किसी भी चीज़ में रुकावट नहीं डालता । इस में हम जो चाहे, जैसे चाहे, निर्माण कर सकते है ।
-साधारण भाषा में आकाश, अर्थात खाली स्थान ही आकाश है । धरती से ले कर आसमान तक जहां भी खाली स्थान है, वह सब आकाश है । यह अनंत है ।
-इस संसार की हर वस्तु, हर घटना, सूर्य प्रकाश, या कहे जो कुछ दिखता है, या अदृश्य है ,वह सब इस आकाश तत्व के अन्दर ही है ।
-हमारा शरीर जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि वा आकाश तत्वों के एक निच्छित अनुपात से मिल कर बना है ।
-हम अपने अन्दर घटित होने वाली चीजो के इलावा कुछ नहीं देख सकते ।
-हम पृथ्वी पर बैठे है, जो कि घूम रही है, और हमें पता नहीं चलता कि वह घूम रही है ।
-पृथ्वी अपनी जगह पर इसलिये है, क्योंकि आकाश इस पृथ्वी, सूर्य तथा सौर मंडल, अकाश गंगा, और पूरे ब्रह्मांड को अपनी ओर खींच रहा है ।
-अगर हम जान जाये कि आकाश तत्व का सहयोग कैसे लेना है, तो मनुष्य जीवन धन्य, धन्य हो जायेगा ।
-अगर आकाश तत्व से मदद मिलती है, तो अदभुत परिवर्तन आयेगा ।
-अगर हमें कोई उपलब्धि मिलती है, तो ऊपर आकाश की ओर देखते है और कहते है, ऊपर वाले की दया से यह हुआ है ।
-जब लाचार होते है, तब भी ऊपर की ओर इशारा करते है, हे नीली छतरी वाले तेरा ही सहारा है । तू ही मेहर कर ।
-जब कोई हमें नमस्कार करता है, तो हम ऊपर की ओर उंगली करते हुये कहते है, ऊपर वाले को नमस्कार ।
-जब कोई खास लक्ष्य रखते है, तो ऊपर वाले की मदद मांगते है । आप की मदद से ही अमुक काम अच्छा होगा ।
-यह जो हम ऊपर वाले की मदद मांगते है इस के पीछे भी गहरा राज़ है । आगे चर्चा करेगें।
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