अनाहत चक्र
-अनाहत चक्र -1
-इस को हृदय चक्र भी कहते हैं ।
-यह चक्र हृदय की सीध में रीढ़ की हड्डी में जो मनका है उस में स्थित है ।
-यह रीढ़ की हड्डी का मनका जिस में ये चक्र है की सही स्थिति हृदय की धुकधुकी के ठीक पीछे है ।
-यह चक्र वायु तत्व का केन्द्र है ।
-इस चक्र पर 12 नाड़ीया मिलती है और उन से निकलता हुआ प्रकाश ऐसे लगता है जैसे 12 पंखडीयों वाला कमल हो ।
-इस चक्र पर जो कम्पन होते है उनकी आवाज़ एक नाद की तरह होती है इस लिये इसे अनाहत चक्र कहते है ।
-इस चक्र की सिद्धि होने पर व्यक्ति अपनी शक्ति को दूसरे शरीर में प्रविष्ट करने में समर्थ हो जाता है ।
-इस चक्र के जागृत होने पर शरीर में से सुगंध निकलने लगती है, जिस से ना केवल व्यक्ति परंतु पेड़ पौधे भी उल्लसित हो जाते है ।
-यह चक्र उच्च भावनाओ से भरे हृदय तथा आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है ।
- इसका संतुलन खराब होने पर कई बीमारियों लग जाती हैं जिस के परिणाम स्वरूप प्रेम वा सेवा भावना का अभाव, सम्बन्धों मे गिरावट, निराशा वा डिप्रेशन आदि हो जाते हैं न ।
-यह चक्र थाईमस ग्रन्थि से जुड़ा हुआ है । यह ग्रंथि हृदय के करीब होती है ।
-इस ग्रंथि के रस स्त्राव से शरीर की रोग निवारण शक्ति बढ़ जाती है । व्यक्ति को रोगॊ से मुक्त होने में अधिक बल मिलता है ।
-नाकारात्मक चिंतन से हृदयदाह का रोग हो जाता है जिस से यह ग्रंथि कमजोर हो जाती है और इस से शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है जिस से कैंसर, टी. बी. आदि भयंकर रोग हो जाते है ।
- दूसरों के साथ आपस में बंटे हुए गहरे रिश्ते और बिना शर्त प्यार की स्थिति को नियंत्रित करता है ।
- प्यार एक उपचारात्मक शक्ति है, यह चक्र भी चिकित्सा का केंद्र माना जाता है ।
-परोपकारिता, खुद के लिए तथा दूसरों के लिए प्यार, क्षमा, अनुकम्पा तथा सुख यह संतुलित अथवा खुले अनाहत चक्र की गहरी विशेषताएँ है ।
-इसमें इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति है।
-अगर यह चक्र सही प्रकार से संतुलित और शुध्द है तो मनोकामनाएँ जल्दी से पूरी हो जाती है ।
-यह चक्र हृदय समेत नाक के ऊपरी भाग तक कार्यरत है तथा ऊपर के अंगो का काम उसके अधीन है ।
-यह चक्र मुख्य रुप से दिल, थाईमस और. फेफड़ों को नियंत्रित करता है ।
-अनाहत अर्थात खुला हुआ अर्थात अजेय ।
-यह चक्र हृदय के द्वारा शरीर की हरेक कोशिका को खून और आक्सीजन पहुँचाता है ।
-यह चक्र बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिल को नियंत्रित करता है और दिल बहुत नाजुक है यह यदि रुक जाये तो व्यक्ति की 5 मिनिट में डेथ हो जाती है ।
-कानो का एक मुख्य काम है सुनना, आँखो का काम है देखना, नाक का काम है सांस लेना मुख का काम है खाना, पैरों का काम है चलना ।
-ऐसे ही अनाहत चक्र का मुख्य काम है खून की सप्लाई शरीर के हर एक भाग को पहुँचाना तथा इस का सूक्ष्म कार्य है प्रेम, दया, कल्याण, सेवा, सहयोग और अपनेपन की भावनाओ का विकास करना ।
-इस चक्र का सीधा सम्बन्ध प्रेम से है । जितना प्रेम करेगें, प्रेम के संकल्पों में रहेंगे उतना ही यह चक्र सक्रिय होता जायेगा और शरीर नीरोगी और शक्तिशाली बनता जायेगा ।
-हमारे दिमाग में एक केन्द्र है जो बहुत शक्तिशाली और प्यारी तरंगे छोड़ता है, जो व्यक्ति को सकून देती है तथा जीव जन्तु तक भागे चले आते है ।
-यह केन्द्र अपने आप कार्य करने लगता है जब हम प्यार का संकल्प मन में रखते है, उसे रिपीट करते है और कार्य व्यवहार में सोचते रहते हैं क़ि मैं प्रेम स्वरूप हूं ।
-चाहे कैसी भी परिस्थिति हो अगर हम मन में स्नेह का भाव रखे तो देर सवेर विजय हमारी ही होगी ।
-प्रेम के संकल्पों में चुम्बकीय बल होता हैं । ये संकल्प अपने आस पास के वातावरण पर प्रभाव डालते हैं । सब व्यक्ति वा प्राकृति के पदार्थ उसकी तरफ़ खींचे चले आते हैं ।
-जब हम प्यार के संकल्प मन में रखते हैं तो उनसे विटामिन वा मिनरल आदि बनने लगते हैं जो खून में मिल जाते हैं और जहां उनकी जरूरत होती हैं उस अंग को शक्तिशाली बना देते हैं ।
-जब हम प्रेम के संकल्प करते हैं तो यह संकल्प रोग प्रतिरोधक सूक्ष्म जीवाणु बन जाते हैं जो हर प्रकार के कीटाणुओं को खा जाते हैं । केन्सर आदि के रोगाणु भी ख़त्म हो जाते हैं ।
-प्रेम के संकल्प एक टॉनिक का काम भी करते हैं । ऐसे शक्तिशाली टॉनिक दुनिया के किसी भी पदार्थ से प्राप्त नहीं होते ।
-प्रेम के संकल्पों से ऐसा बल पैदा होता है जिस से हमारे पाप कर्म भस्म हो जाते है और सूक्ष्म शरीर शुध्द हो जाता है ।
-प्रेम के संकल्पों से हमारे में दिव्य गुण अपने आप आने लगते है और हम सर्व गुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण बन जाते है ।
-प्रेम के संकल्पों से आलस्य, अलबेलापन, बहानेबाजी के सूक्ष्म विकार ख़त्म हो जाते है।
-स्नेह के संकल्पों से ऐसा बल उत्पन होता है जिस से हम निराकारी, निर्विकारी तथा निरअहंकारी स्थिति में सहज ही पहुंच जाते है ।
आन्तरिक बल 1277
-अनाहत चक्र.-3
-यह दयालु ऊर्जा चक्र है ।
-इस चक्र का सूक्ष्म सम्बन्ध दया भावना से है । इस चक्र पर बिंदू प्रकाश को देखते हुये जितना हम दया भावना अर्थात मैं दयालु हूं दयालु हूं के संकल्पों पर ध्यान देते है तो यह चक्र जागृत होता जाता है ।
-कुछ व्यक्ति ऐसे मिलेंगे जो दुर्गुणों के भंडार होते है । उनको कितना ही समझा लो वह नहीं मानते । ऐसे व्यक्तियों को बदलने के लिये उन के प्रति दया का भाव रखो । अपने मन में सोचते रहो मैं दयालु हूं दयालु हूं और उनके प्रति सोचो आप का कल्याण हो कल्याण हो । यह विचार रखने से आप को कोई कष्ट नहीं होगा उनके दुर्गुणों का आप पर असर नहीं होगा । वह बदलने लगेगें ।
-जब हम दया या कल्याण के संकल्प मन में रिपीट करते है तो उन से निकली तरंगे बहुत तीखी होती है ऐसे समझो जैसे वेल्डिंग की तरंगे होती है । जैसे वेलडिंग तरंगे लोहे और स्टील को काट देती हैं वा पिँघला देती हैं । ऐसे ही दया की तरंगे बहुत कठोर दिल व्यक्ति का दिल बदल देती हैँ ।
-हिंसा, द्वेष, वैर, विरोध की लपटें दया का स्पर्श पा कर शांत हो जाती हैँ।
-दया की भावना रखने से हिंसक अहिंसक, दुश्मन भी मित्र बन जाते हैं ।
-दया के विचार रखने से स्थायी और अलौकिक विजय मिलती है । दया की भावना जीव जन्तुओं को भी जीत लेती है । उनकी हिंसक वृत्ति ख़त्म हो जाती है ।
-दया के विचारो से स्नेह, आत्मीयता आदि कोमल भावों का विकास होता है ।
-दया की भावना किसी को सुधारने का एक शक्तिशाली साधन है । अपराधी भी सुधर जाते हैं ।
-अपराधी लोगो का जीवन किसी के सहयोग,प्रेम, सहानुभुति और आत्मीयता से रहित होता है । इसलिये ये लोग कठोर वा कुकर्मी बन जाते है ।
-दया भावना से संतोष, प्रसन्नता, उत्साह, आशा एवम उमंग पैदा होता है ।
-दया के बिना इस संसार का संचालन सम्भव नहीं है ।
-दया का भाव किसी वरदान से कम नहीं है ।
-मदर तरेसा, महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर, विनोबा भावे ने दया भावना के कारण इस विश्व में अपना नाम रोशन किया ।
-जो लोग अनाथालय वृद्ध आश्रमों , महिला उत्थान ग्रहों, कुश्ट निवारण ग्रहों में रहते है उनके प्रति घर बैठे सोचते रहें आप का कल्याण हो कल्याण हो तो ये तरंगे उन तक पहुंचेगी और वह ठीक होते जायेगे।
-ऐसे ही कुछ व्यक्ति आप के आसपास होगे या घर में होगे जिनके संस्कार बहुत कड़े है, कुछ बहुत बुरी आदतें है । वह दबंग हो सकते है, हिंसक वृत्ति वाले हो सकते है, वह अहंकारी, शकी दिमाग के हो सकते है, उन्हे कोई कड़ा रोग हो सकता है, वह नशेड़ी हो सकते है और आप के लिये नासूर बने हुये है । ऐसे लोगो प्रति प्यार नहीं उपजता । उनके लिये सदा सोचते रहो आप का कल्याण हो कल्याण हो । अपने प्रति सोचते रहो मैं दयालु हूं दयालु हूं बाबा आप दया के सागर है । ऐसे संकल्पों से वह लोग भी बदलेंगे और हमारे भी गहरे बुरे संस्कार बदलेंगे ।
-दयालुता के संकल्पों से हृदय चक्र जागृत होता जायेगा और आप को पता ही नहीं लगेगा और एक दिन विश्व में कल्याणकारी रुप में प्रकट हो जायेगे ।
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