अनाहत चक्र - भाग-2

अनाहत चक्र

-अनाहत चक्र-4

-अनाहत चक्र हमें सारे सांसर  से, व्यक्तियों से,  जीव जन्तुओं से,  पांचौ  तत्वों से जोड़ कर रखता  है ।  

-सधारण भाषा  में इसे  हम सहयोग की भावना वाला चक्र  कह सकते है । 

-जब हम छोटे  बच्चे थे तो अपने  माता-पिता, भाई-बहिन और दूसरे नज़दीकी  लोगो  के सहयोग  से बड़े हुये ।  फ़िर शिक्षा  ली, काम धंधा  सीखा, शादी आदि के   कार्य किसी ना किसी के सहयोग से सम्पन्न किये  ।

- बड़े होने पर अपने जीवन की जरूरतें  पूरी करने के लिये दूसरे लोगो का  सहयोग लेना  पड़ता है । 

-ऐसे ही हम पौधों से आक्सीजन लेते है और  कार्बनडाईओक़साइड देते है । एक   ग्रह  दूसरे ग्रह को अपनी ओर खींचता  है जिस से ये  सभी अपनी अपनी धुरी पर घूम रहें है ।

-हमारा अनाहत चक्र अनजाने में ये सब कार्य कर रहा  है,  तथा  शरीर के सभी अंगो को एक साथ कार्य करने के  लिये खून और आक्सीजन सदैव प्रदान कर रहा है ।  आज लोगो में स्वार्थ आ गया है जिस से इस चक्र का  संतुलन बिगड़ गया है  और यही कारण है कि  हर व्यक्ति परेशान है । अतः  हमें  सहयोग को समझना  होगा ।

- सहयोग का अर्थ है मिल कर चलना । अपने को प्राप्त ज्ञान का सभी दिशाओं में आदान प्रदान करना । सहयोग अर्थात एक दूसरे को आगे बढाना  ।

-आर्थिक सहयोग, तकनीकी सहयोग, काम धन्धे  में सहयोग, समस्याओं, बुरे विचारो, बुरी आदतों से बचने का सहयोग देने से यह चक्र शक्तिशाली बनता है ।

-किसी भी व्यक्ति के जीवन में कोई बाधा  नहीं डालनी चाहिये । जो दूसरो के लिये लाभदायक है उसमे सहयोग करने से आप का यह चक्र जागृत होगा ।

-संसार के सभी प्राणी एक ही परिवार  है, उनके प्रति जितना सहयोग की भावना  होगी, उतना ही स्वर्ग बनेगा । मानवता की भावना  सब से उत्तम सहयोग है । सहयोग की भावना सबसे बड़ा सद्गुण है । हम हर जगह तन, मन और धन से सहयोग नहीं दे सकते । यह सहयोग तो वहां  देना है जहां हमारी पहली ड्यूटी है ।

 मान   लो हमारे घर  वाले भूखे है और पडोसी भी  भूख से   मर रहें है तो पहले अपने घर  वालो को रोटी खिलानी है उसके बाद पड़ोस में खिलानी है । परंतु पड़ोस वा सारे संसार के प्रति ये भावना  रखो कि आप सब की भी  अच्छी  इच्छाये पुरी हो । हर समय मन  में भाव  रखो मैं सहयोगी हूं चाहे कोई भी  अनजान व्यक्ति हो । यह सूक्ष्म सहयोग का    भाव रखने से अनाहत चक्र जागृत हो जाता  है ।

-सहयोग की भावना जितनी भीतर शुध्द होगी, पवित्र होगी, उतना ही उसका बोल और व्यवहार  मधुर होगा  तथा  लोग उतना ही उसकी बात को ध्यान से सुनेंगे ।

-कठोरता और निर्दयता   दर्शाती है  कि  आप के मन में सहयोग की भावना  नहीं है । अतः आप   के जीवन में विघ्न आते रहेंगे ।
 
-इस लिये सदैव मन में भाव  रखो मैं सब का सहयोगी हूं, सहयोगी हूं ! इस से आप का अनाहत  चक्र शुध्द रहेगा और आप जीवन  में खुश रहेंगे ।

-अनाहत चक्र वायु तत्व  से  जुड़ा  है । वायु तत्व इस चक्र पर बहुत गहरा प्रभाव डालता है । इस लिये हमें वायु तत्व के बारे  जानना बहुत ज़रूरी है ।

-जीवित रहने के लिये वायु आवश्यक तत्व है ।यदि एक मिनिट वायु न  मिले तो हम बेचैन हो उठते है । ज्यादा देर हवा न  मिले तो हमारी मृत्यु हो सकती है ।

-वायु आवश्यक भोजन तत्व है । हम बडी मात्रा  में वायु खाते  रहते है । हम एक मिनिट में 16 से 18 सांस लेते है और एक सांस में 25-30 घन इंच  हवा ले लेते है ।  सारे दिन में 33 से 36 पौंड हवा लेते है ।

-सांस लेने में 100 मांसपेशीया काम करती है । प्रति दिन भोजन और जल से 7 गुणा हवा लेते है । सांस द्वारा जो वायु लेते है वह फेफड़ों में 15 वर्ग फुट से अधिक चक्र काटती है ।

-फेफड़ों में हर समय 60 घन  इंच हवा  रहती है तथा  25-33 घन इंच सांस छोड्ते  समय बाहर निकालते है ।

-वायुमंडल पृथ्वी के 300 मील  तक फैला  हुआ है । इस वायुमंडल में अधिकतर जल, नाइट्रोजन और आक्सीजन है । इस में कार्बनडाईओक़साइड  और धूल कण भी  है ।

-नाइट्रोजन शरीर के लिये बेकार है जैसे आती  है वैसे ही लौट जाती है ।

-आक्सीजन वायु शरीर में जाते ही  फेफड़ों द्वारा  रक्त में मिल  जाती है तथा  हृदय रक्त को शरीर की प्रत्येक कोशिका  तक पहुँचा  देता है । जिस से कोशिका  को शक्ति मिलती है । इसी आक्सीजन में हमारे संकल्प भी  मिल जाते है और प्रत्येक  कोशिका  को प्रभावित करते है । 

-सकारात्मक संकल्प से प्रत्येक कोशिका को बल मिलता है और नकारात्मक संकल्पों से कोशिका  कमजोर होती है ।

-इन्ही संकल्पों में भगवान  का बल भी  पहुंच  जाता है, अगर हम ध्यान योग का अभ्यास  करते है । भगवन से प्राप्त बल द्वारा  बीमार कोशिका  का पुनर्निर्माण होता है  जैसे गर्भ में होता है । तभी गायन है हर पल हर सांस भगवान का सिमरन करना चाहिये ।

- 1 से 3 मिनिट के अन्दर हर संकल्प का प्रभाव हर कोशिका  पर पड़ता है ।

-नीले गंदे रक्त से कार्बनडाइऑक्साइड बाहर   निकलती है ।

-नाइट्रोजन वायु चर प्राणी नहीं लेते सिर्फ पेड़ पौधे ही ग्रहण करते  है ।

- ऑक्सिजन की  विशेषता  है यह जलती है । जहां भी  कोई आग जलती है, भोजन  ख़राब  या बासी  होता है समझो ये सब ऑक्सिजन ने किया ।

-जो हम सांस लेते है उसमे जल और नाइट्रोजन होती है । नाईटरोंजन आक्सीजन  को जलने नहीं देती है।

-अनाहत चक्र वायु  तत्व से जुड़ा हुआ है ।

-आक्सीजन शरीर की हर कोशिका में पहुंच  कर जलने का कार्य करती है जिस से गर्मी पैदा  होती है और शरीर का तापमान बना रहता है ।

-हवा में परम  उपयोगी ओजोन गैस मिली रहती है । ओजोन गैस की गंध  बहुत तीव्र  होती है । ओजोन गैस केवल जंगल उपवन, पहाड़ और समुन्द्र किनारे  की हवा में पाई  जाती है ।

-क्षय रोगियों की रक्षा पहाड़ पर इसी ओजोन गैस से होती है ।

-वायु की  शुद्वि अग्नि से होती है इसलिये यज्ञ का विधान है । शायद  हवा को शुध्द करने लिये  हर रोज़ दीपक ( जोत ) जलाने  का नियम भी  है ।

-वायु को प्राण कहते है क्योंकि इसके बगैर हम जिंदा  नहीं रह सकते ।

-जैसे हम नाक  से सांस लेते हैं, ऐसे ही हमारा शरीर अपनी त्वचा से भी  सांस लेता है ।

-हर समय शरीर को कपड़ो  से ढके रहने कारण पूर्ण आक्सीजन नहीं मिलती और त्वचा के छिद्र बंद हो जाते है । जिस से हृदय समस्या, कब्ज समस्या वा शुगर का रोग हो जाता है ।

-हमें ऐसे वस्त्र पहनने चाहिये  जिस से शरीर को हवा लगती रहे  । आदमियों को नंगे बदन रहने में समस्या नहीं है । बहिनों के लिये यह बहुत मुश्किल काम है । शायद इस लिये  बहिनों  के लिये हमारे पूर्वजों ने साड़ी  पहनने का नियम बनाया ।

-पूर्व, पच्छिम  और उतर दिशा  से चलने वाली हवा  कोई ना कोई विकार पैदा करती है । दक्षिण दिशा  से चलने वाली वायु बिलकुल दोष रहित होती है । अतः इस वायु का सेवन करना चाहिये । दक्षिण दिशा  से  वायु सुबह 4 बजे से ले कर दिन निकलने तक अवश्य चलती है ।

-वायु लाभ कुदरती वायु से मिलता है । बिजली के पंखे से हवा का लाभ नहीं होता । बिजली के पंखे से ली गई हवा से जोडो का दर्द हो जाता  है । इस हवा का लेना आज के समय ज़रूरी हो गया है क्योंकि लोगो को  सिर छिपाने  की  जगह भी  बडी मुश्किल  मिलती है ।

-घूमने के लिये शहर से दूर जहां पेड़ हो अकेले ही चलना  चाहिये । कम से कम 4-5 किलोमीटर ज़रूर चलना  चाहिये । 

-प्रत्येक व्यक्ति अपने से 21 इंच दूर तक की हवा खींचता  और छोड़ता  है । वायु फेफड़ों में 15 वर्ग फूट  स्थान पर चक्र लगाती है ।

-वायु की मात्रा कम होने से गठिया, लकवा, दर्द, अकड़न, नाड़ी विक्षेप आदि उत्पात खड़े हो जाते है । ऐसे रोगो में दवाई और योग के साथ भरपूर वायु भी  लेनी है । दरवाजे  खिड़कियां  सदा खुली रखनी है ।

-वायु तत्व के बिगड़ने से शारीरिक पीड़ा वा निराशा  आती है ।

-बिना किसी कारण मन में घुटन है, आलस्य है, मूड  ठीक नहीं, उदासी है, खाली  खाली  सा  लगता है,  फ्रेश महसूस नहीं करते है तो इस का एक कारण यह  भी  है कि आप को साफ सुथरी हवा नहीं  मिल रही । आप  का अनाहत चक्र ठीक काम  नहीँ कर रहा हैं । इसे ठीक करने लिये 5 मिनट पार्क  जरूर जाओ । 

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