सांस और नाड़ियां
🧘🏻♀️सांस और नाडिया
-हमारे शरीर मे 72000 नाड़ीया है । यॆ हमारे सारे शरीर मे फैली हुई है । इनके द्वारा शरीर के भिन्न भिन्न अंगो को मानसिक विद्युत, आक्सीजन तथा संकल्प विकल्प के रुप मे संदेश भेजे जाते है और प्राप्त किये जाते है ।
शरीर मे जो टूट फूट होती है उसकी रिपेयर भी की जाती है । शरीर का आन्तरिक रख रखाव व गति विधियां भी इन्ही के द्वारा होता है । इन की सहायता के लिये अनंत सूक्ष्म तंतु भी कार्य करते है । यह सब एक कारखाने की तरह ऑटोमेटिक होता रहता है ।
-इन नाड़ीयों का भौतिक रुप नहीं होता । अगर शरीर की चीर फाड़ की जाये तो दिखेंगी नहीं । यॆ शरीर के अन्दर प्रकाश से बनी हुई है ।
-रीढ़ की हड्डी सारे शरीर का आधार है । इसमे 33 मनके होते है ।
- शरीर के सारे अंग हाथ , पैर, नाक, कान, मुख तथा गुप्त कर्म इंद्रियां रीढ़ की हड्डी से जुड़े है ।
-शरीर के आन्तरिक अंग पेट, लिवर, गुर्दे, दिल, फेफ्डे, आंते, खून की नसें सब रीढ़ की हड्डी से जुड़े हैं ।
-शरीर के भाग रीढ़ की हड्डी मे जहां मिलते है, वहां सूक्ष्म उर्जा के केन्द्र है । शरीर के विभिन्न भाग इन सूक्ष्म केन्द्रों से जीवनी विद्युत प्राप्त करते है जिस से सभी स्थूल और सूक्ष्म हिस्से अपना अपना कार्य करते है ।
-यॆ सूक्ष्म उर्जा के जो केन्द्र हैं यहां पर प्रकाश का एक एक बिंदू होता है । यही प्रकाश पुंज ही शक्ति का स्त्रोत है ।
-इन दिव्य शक्ति केन्द्रों तथा सारे शरीर को मिलाने वाली तीन नाड़ीया है ।
-पहली है इडा नाड़ी । यॆ मेरुदंड के बायें तरफ़ होती है । यॆ बायें नाक से जुड़ी हुई है । इसे चंद्र नाड़ी भी कहते है क्योंकि यह चंद्रमा से शक्ति लेती है ।
यह शरीर को ठंडक पहुंचातीं है । जब बहुत गर्मी लग रही हो तो दायें नाक को रूई से बंद कर दो और सिर्फ बायें नाक से सांस लेते रहे तो हमें गर्मी मे भी सर्दी लगने लगेगी । जब बायाँ स्वर चलता है तो इस समय भगवान को याद करने से अच्छी अनुभूति होती है ।
-रीढ़ की हड्डी के दायें तरफ़ पिंगला नाड़ी है । इसे सूर्य नाड़ी भी कहते है । यॆ हमारे दायें नाक से जुड़ी हुई है । हम जब दायें नथुने से सांस लेते है तो वह पिंगला नाड़ी मे प्रवाहित होता है । यॆ नाड़ी सूर्य से शक्ति प्राप्त करती है । यह नाड़ी शरीर मे गर्मी प्रदान करती है ।
-तीसरी नाड़ी सुषमना नाड़ी है । यह नाड़ी रीढ़ की हड्डी के बीच मे स्थित है । यॆ नाड़ी सहस्त्रार मे जा मिलती है । यॆ नाड़ी शांत रहती है । जब बायें से दायाँ और दायें से बाया स्वर बदलता है तो थोड़ी देर तक दोनो नाक से स्वर चलता है । बस इतनी देर तक सुषमना नाड़ी चालु रहती है । जब यॆ स्वर चल रहा हो तो विचार सात्विक और एकाग्र होते है ।
-सुषमना नाड़ी सहस्त्रार से जुड़ी है जो आध्यात्मिकता का केन्द्र है । इस स्वर के समय भगवान को विशेष याद करना चाहिये । बहुत अच्छा योग लगेगा ।
🧘🏻♀️सांस -कुंडलनी
-हमारे जीवन का आधार सांस है ।
-अगर हमें पाँच मिनट सांस न आयें तो हमें मृत घोषित कर दिया जायेगा ।
-जीवित मनुष्य कोई न कोई कर्म करता रहता है ।
-मनुष्य जो कोई भी काम करते है उसका आधार संकल्प है ।
-संकल्प एक महान शक्ति है । जब तक मनुष्य जिंदा है संकल्प आते ही रहते है । यॆ सूक्ष्म एनर्जी है विद्युत है । संकल्प शक्ति हमारे दिमाग में पैदा होती है ।
- संकल्प अपना कार्य शरीर मे स्थित विभिन्न उर्जा केन्द्रों से करते हैं ।
-मनुष्य के शरीर में सात उर्जा केन्द्र हैं । यह सारे उर्जा केन्द्र मनुष्य की रीढ़ की हड्डी मे स्थित है । इसमे मूल आधार केन्द्र बहुत महत्व पूर्ण है ।
-मूल आधार केन्द्र मेरुदंड के सबसे निचले मनके मे स्थित है । यहां एक प्रकाश का बिंदू है जो शक्ति का स्त्रोत है । कहते है कुंडलनी साँप की तरह इसी में लिपटी रहती है ।
- यॆ एटम से भी सूक्ष्म है । इसे हम स्थूल नेत्रों से नहीं देख सकते ।
-यॆ शरीर का दक्षिणी ध्रुव है । जैसे धरती के दक्षिणी ध्रुव से प्यार की तरंगे निकलती है । ऐसे ही मूल आधार (कुंडलनी ) शक्ति से प्रेम ( आकर्षण ) की तरंगे वातावरण मे फैलती रहती है ।
यही कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति विपरीत लिंग से आकर्षित होता रहता है । इस विकारी तृष्णा से मानसिक एनर्जी खर्च होती रहती है । इसे काम भावना कहते है । इसे जीतना असम्भव कार्य माना जाता है । इसी काम वासना से सारा संसार जल रहा है ।
- यॆ चक्र धरती से जुड़ा है । इसी लिये सभी व्यक्ति संसार के सुख के साधन प्राप्त करना चाहते हैं । अधिक से अधिक धन पाना चाहते है । मान शान व ऊंच से ऊंच पद पाना चाहते है । सर्व शक्तियां अपने हाथ मे रखना चाहते हैं ।
-साधक लोग भी अपनी संस्था को बड़ा बनाने मे लग जाते हैं । वे जिज्ञासुओ के रख रखाव मे लगे रहते है । ऐसे व्यक्ति संस्था की बागडोर छोड़ते नहीं । अधिक से अधिक भौतिक साधनों के पीछे लगे रहते है । महान पदों पर विराजमान लोगो के बोल मीठे होते है परंतु मन मे वैर रखते है । ये सब मूल चक्र का प्रभाव है ।
- मूल चक्र की अग्नि और पृथ्वी मे पाई जाने वाली अग्नि मे बहुत समानता है ।
-यह स्फुरण वाली शक्ति है, इस लिये यहां की नाड़ीया उतेजित बनी रहती है
ओम शान्ति..
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